आज की डिजिटल दुनिया में, हमें अक्सर यह एहसास नहीं होता कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी किस हद तक सैटेलाइट-नेविगेशन (GNSS) पर निर्भर है। लेकिन GPS में हो रही स्पूफिंग और जैमिंग जैसी खतरनाक घटनाएं यह दिखा रही हैं कि यह सुविधा कितनी नाजुक भी हो सकती है। हाल ही में, दुनिया भर में GPS सिग्नल में छेड़छाड़ के मामले तेजी से बढ़े हैं। कई देश अब बैकअप नेविगेशन सिस्टम तैयार कर रहे हैं ताकि भविष्य में ऐसी खतरनाक चुनौतियों से निपटा जा सके।
GPS क्या है और क्यों ज़रूरी है
GPS सैटेलाइट-नेटवर्क है, जिसमें अमेरिका के 24 से ज़्यादा सक्रिय उपग्रह शामिल हैं, जो हर वक्त समय और पोजिशन की जानकारी भेजते हैं। इस प्रणाली पर सिर्फ हमें दिशा-निर्देश देने वाले ऐप्स ही नहीं, बल्कि एयरलाइंस, लॉजिस्टिक्स, मोबिलिटी (शिपिंग, ट्रैकिंग), टेलीकॉम नेटवर्क, और फाइनेंशियल मार्केट्स भी निर्भर करते हैं।
PNT यानि पोजिशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग इन तीनों में टाइमिंग जितनी ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है, उतनी ही नाजुक होती है। क्योंकि यदि समय में बहुत छोटा भी फर्क पड़ जाए, तो बड़े-बड़े नेटवर्क जैसे डेटा सेंटर, फाइनेंस डाउन हो सकते हैं।
स्पूफिंग क्यों बढ़ रहा है?
GPS स्पूफिंग का मतलब है नकली सिग्नल भेजना, जिससे रिसीवर जैसे-विमान या मोबाइल अपने वास्तविक पोजिशन को गलत तरीके से पहचान ले। IATA (इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में GPS जैमिंग और स्पूफिंग की घटनाओं में बहुत तेज वृद्धि हुई है।
ऐसे मामलों में पायलटों ने बताया है कि एयरक्राफ्ट को अचानक यह दिखाया गया कि वे अपनी वास्तविक लोकेशन से बहुत दूर हैं। यह काफ़ी खतरनाक हो सकता है। भारत में भी यह समस्या सामने आ रही है। DGCA ने निर्देश दिए हैं कि अगर GPS में अनियमितता दिखे, तो उसे 10 मिनट के अंदर रिपोर्ट करना चाहिए। इसके अलावा, भारत-म्यांमार सीमा क्षेत्र में भारतीय वायुसेना के विमानों ने भी GPS स्पूफिंग की शिकायत की थी।

सरकारें और देश क्या कर रहे हैं जवाब में?
दुनिया भर में देश अपनी GPS निर्भरता को कम करने की रणनीति बना रहे हैं और बैकअप PNT (Positioning, Navigation, Timing) सिस्टम बना रहे हैं। कुछ तकनीकों में eLoran, लो-एर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट बेस्ड सिस्टम, फाइबर-नेटवर्क टाइमिंग, क्वांटम सेंसर आदि शामिल हैं।
उदाहरण के लिए, यूके ने राष्ट्रीय eLoran नेटवर्क बनाने के लिए निवेश किया है, क्योंकि उसका सिग्नल ज्यादातर GPS से बहुत मजबूत होता है और स्पूफिंग के लिए मुश्किल है। चीन और रूस भी अपनी PNT लेयर को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। भारत में NavIC (नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन) का महत्व बढ़ रहा है। भविष्य में इसे स्मार्टफोन में अनिवार्य करने की संभावनाओं पर भी चर्चा है।
ख़तरे और अगले कदम
यह खतरा सिर्फ उड़ानों तक सीमित नहीं है। अगर GPS समय-सिंक में गड़बड़ी आए, तो बैंकिंग, फाइनेंस, डेटा सेंटर्स, पावर ग्रिड आदि सब प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि देशों में बहु-स्तरीय नेविगेशन प्रणाली हो। ताकि सिर्फ GPS पर निर्भर न रहना पड़े, बल्कि बैकअप सिस्टम को भी मजबूत करना हो। साथ ही, एयरलाइंस, एयर कंट्रोल, पायलट और ATC (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) को ऐसे रिपोर्टिंग मैकेनिज्म को अपनाना चाहिए जिससे कोई भी संदिग्ध घटना तुरंत पकड़ी जाए।
टेक्नोलॉजी कंपनियों को ऐसे रिसीवर्स और डिटेक्शन सिस्टम विकसित करने चाहिए जो स्पूफिंग का पहले ही पता लगा सकें जैसे कि मशीन लर्निंग-आधारित GPS IDS, क्वांटम सेंसर, इनर्शियल सिस्टम आदि।
मेरी राय
जीपीएस (GPS) ने हमारी आधुनिक जिंदगी को जिस तरह बदल कर रख दिया है, वह अभूतपूर्व है लेकिन जैसे जैसे हम इस पर और ज्यादा निर्भर हो रहे हैं, वैसे वैसे उसके ख़तरों की पहचान और उन पर नियंत्रण भी उतना ही जरूरी हो जाता है। स्पूफिंग जैसी घटनाएं सिर्फ टेक्नोलॉजी की समस्या नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, विमानन सुरक्षा, और महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा का सवाल हैं।
इसलिए, हमें सिर्फ बैकअप सिस्टम ही नहीं बल्कि एक ऐसी संरचना चाहिए जो लचीली हो ताकि भविष्य में GPS असफल हो जाए, तब भी हमारी दुनिया उसी तरह आगे चल सके।
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